कविता लिखी नहीं जाती,स्वतः लिख जाती है…

Friday 3 February, 2012

रात के जज़बात


सदा तुम्हारा इंतज़ार क्यूँ रहता
वज़ूद क्या नहीं, कोई मेरा
माना कि तुम हो उजली साफ
तो क्या? जीवन नहीं घनेरा
हर आशा को सदा,तुझसे ही
जोड़ा जाता,जबकि
निराश और थके आते हैं सब
सदा,मेरी बाँहों में समाते हैं सब।
समझती उन्हे और हौसला भी भरती
चूम पलकों को झट आगोश में लेती
फिर भी कहते हैं लोग,फ़िक्र न कर
कट जाएगी रात—
आएगी सुबह,ले नई सौगात।
नई सोच को बल,सदा मुझसे
ही मिलता….
न मुझे कोई देखता,न कोई सराहता
जबकि हर जिस्म में,
ऊर्जा भरती हूँ मैं
थपकी मीठी नींद की,उमंग भरती हूँ मैं
हूँ ख़ास तो बहुत, फिर भी…..
क्यूँ रहता सदा तेरा इंतज़ार।
(रात के सवाल हैं सुबह से कुछ ख़ास)

6 comments:

  1. मंत्रमुग्ध कर देनेवाली रात की जज्बात की प्रस्तुति शानदार है | ये तो हुए रात के जज्बात .... अब पढ़िए दिल की जज्बात यहाँ पधारें

    http://www.akashsingh307.blogspot.com

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  2. बहुत सुंदर बीएचवी संयोजन.... http://mhare-anubhav.blogspot.com/ समय मिले कभी तो आयेगा मेरी इस पोस्ट पर आपका स्वागत है

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  3. Excellent heart rendering expression
    Keep it up ......

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  4. कहीं कहीं शब्दों का प्रवाह रुका सा लग रहा है.....कुछ अंतर्द्वंद हैं जो स्पष्ट होकर आना चाहिए.पर सवाल बीच में खड़ा लग रहा है...आपकी टैग लाईन है कि कविता स्वत लिख जाती है....पर उस स्वतः में बाधा आपका अचेतन मन है या शब्दों के मिलन में कुछ रोक...शायद मुझे लगा ऐसा...या ऐसा है पता नहीं?

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