कविता लिखी नहीं जाती,स्वतः लिख जाती है…

Sunday 29 January, 2012

सोचा आज कुछ लिखूँ

सोचा आज कुछ लिखूँ
सिर्फ तुम्हारे लिये
कलम चली ही नहीं
हँस पड़ी मुझ पर
भाव शून्य हो गए
दिल धड़का ही नहीं
मन कर रहा प्रयास बार-बार
फिर भी नहीं उठे
ह्रदय में उदगार
अब हम परेशां
लिखें भी तो क्या
न कुछ सूझने की,है क्या वजह!
ऐ मेरे अन्तर्मन कुछ तो बताओ
है कैसी ये पहेली?
बेबस हैं हम,लाचार भी
हुआ क्या है ये
कोई हल तो बताओ।
आई फिर आवाज़ कहीं बहुत दूर
अब तक जो लिखा,वो क्या था भला
हमारे सिवा न लिखा कुछ कहीं
शब्दों में लिपटे,भाव हैं वही
जो सोचे हैं तुमने हमारे लिये
सर्वस्व तुम्हारा हम ही तो है-
और हो तुम,सिर्फ हमारे लिये…

सितम्बर 16, 2011

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