कविता लिखी नहीं जाती,स्वतः लिख जाती है…

Monday 30 January, 2012

मुमकिन होता नहीं

चाहे कोई आपको,आपकी तरह
मुमकिन होता नहीं
सुने अनकहे लफ़्ज़ों के जज़बात
मुमकिन होता नहीं
क्यूँ नहीं ये ज़िंदगी,उन्हें उन से मिलाती
जो पूरे कर सके सारे ख़्वाब
मुश्किल तो नहीं,फिर भी
मुमकिन होता नहीं
न परवाह है कोई,कि चाहे कोई क्या
जब दर्द उठे दिल में,फिर चुप रहना
मुमकिन होता नहीं
शिकायतों का दौर थमता नहीं
फिर भी उसे बयाँ करना
मुमकिन होता नहीं
गहरी सूनी आँखे न जाने क्या-क्या खोजतीं
फिर उन्हे सूखा रख पाना
मुमकिन होता नहीं
गज़ब है ये ज़िंदगी,गज़ब हैं ये चाहते
इनके बिन भी जीना
मुमकिन होता नहीं
ठीक उस तरह जैसे रात के बिना
सुबह का आना
मुमकिन होता नहीं।

No comments:

Post a Comment