बचपन से ही चलती गाड़ी से
सड़कों को देखना भाता है हमें
लगता था कि सड़क भाग रही है
और हम पीछे छूट रहे
बड़ा अचरज होता था तब।
कभी दूर सड़क पर पानी का दिखना
मृग तृष्णा का अर्थ,तब पता ही न था
जीवन के सबसे बड़े अजूबे
तब यही तो लगते थे।
आज यूँ बड़े हो,सब समझ तो गए
पर वो नासमझी के अचरज
मन खुद को वहीं कहीं पाता है
हम नहीं,सड़क चल रही
पेड़-पौधे चल रहे,
सोच इन यादों को
मन बस यूँ ही मुस्काता है।
सड़कों को देखना भाता है हमें
लगता था कि सड़क भाग रही है
और हम पीछे छूट रहे
बड़ा अचरज होता था तब।
कभी दूर सड़क पर पानी का दिखना
मृग तृष्णा का अर्थ,तब पता ही न था
जीवन के सबसे बड़े अजूबे
तब यही तो लगते थे।
आज यूँ बड़े हो,सब समझ तो गए
पर वो नासमझी के अचरज
मन खुद को वहीं कहीं पाता है
हम नहीं,सड़क चल रही
पेड़-पौधे चल रहे,
सोच इन यादों को
मन बस यूँ ही मुस्काता है।