कविता लिखी नहीं जाती,स्वतः लिख जाती है…

Sunday 29 January, 2012

लोकपाल बिलः मांगें उचित तरीका गलत

देश के मौजूदा हालात से सभी वाकिफ़ हैं क्योंकि शहर ही नहीं गाँव तक में अन्ना की जलाई मशाल खूब जल रही है मीडिया ने सभी को जागृत कर दिया है। अन्ना की भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग में हम सभी शामिल हैं किंतु क्या हमें ये पताहै कि जन लोक बिल है क्या? शायद काफी लोग जानते भी नहीं होंगें किंतु जैसे ही बात भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ फेंकने की आई हम सभी साथ हो लिये अन्ना के और सरकार को ही अपना सबसे बडा दुश्मन मान बैठे,सरकार की ही खिलाफत करने लगे हाँ सरकार ने एक गलती करी है अन्ना को गिरफ्तार करके जो कि कानूनी रूप से गलत है क्योंकि हमारे देश में किसी भी नागरिक को अभिव्यक्ति की आजादी सविंधान प्रदत्त मूल अधिकार है और अन्ना यही करने जा रहे थे -
आजादी केवल यही नहीं
अपनी सरकार बनाना है
आजादी है उसके खिलाफ
अपनी आवाज़ उठाना भी…

सरकार ने इस मूल अधिकार का अपहरण किया अन्ना को गिरफ्तार करके। हमारे देश मे कोई भी व्यक्ति अपना विरोध प्रकट कर सकता है बिना हिंसा किये हुए बशर्ते वो विरोध समाज के हितार्थ हो और अन्ना यही करने जा रहे थे जब सरकार ने उन्हे गिरफ्तार किया अतः सरकार ने कानून का उल्लंघन किया जिसकी जवाब देही सरकार को इस जन आंदोलन के रूप में मिल रही है।
अब हम बात करते हैं जन लोकपाल बिल की सबसे पहले हमें ये जान लेना चाहिये कि जन लोकपाल बिल के पास होने या न होने में कम से हमारे माननीय प्रधान मंत्री जी का कोई हाथ नहीं है जबकि हम उन्हीं पर दोषारोपड़ किये जा रहे हैं। देश में कोई भी कानून बनाने का हक किसी भी नागरिक या प्रधानमंत्री को नहीं है बल्कि जो भी मुद्दा हो उस पर हमें पहले लोक सभा व राज्य सभा दोनों ही जगह अपना प्रतिनिधि रखना होता है जो आपके सुझाव को सभी के समक्ष प्रस्तुत करता है उसके पश्चात यदि उस प्र्ताव पर लोक सभा व राज्य सभा दोनों से ही 2/3 का बहुमत हासिल होता है तब वो प्रस्ताव देश के राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है ओर यदि राष्ट्रपति उस पर सहमति देकर अपने साइन कर देते हैं तो वह सविंधान में संशोधन कर के किसी कानून के रूप में लागू हो सकता है यदि राष्ट्रपति उस पर साइन नहीं करते तो वह कानून नहीं बन पाता है और पुनः सारी प्रक्रिया होती है किंतु यदि दूसरी बार भी वह प्रस्ताव लोक सभा व राज्य सभा से समर्थन पा जाता है तब राष्ट्रपति विवश होता है उसे स्वीकार करने के लिये,राष्ट्रपति को उसकी सहमति देनी ही पड़ती है। यह एक सही तरीका है किसी कानून को लागू करवाने के लिये जो कि अन्ना नहीं कर रहे,संविधान का सम्मान सर्वोपरि है।

आज पूरा देश व देश के जाने माने नेता भी उनके साथ है तो यह तो स्वीकार नहीं होगा कि संसद में उनका कोई प्रतिनिधि नहीं है या इन महा-महीषियों को सविंधान के नियमों का इतना भी ज्ञान नहीं है जो कि बारहवीं कक्षा में ही नागरिक शास्त्र विषय मे क्षात्रों को पढ़ाया जाता है। अन्ना के पास सविंधान विशेषज्ञों की एक टीम है अच्छा होता कि वो जनता से यह अपील करते कि प्रत्येक व्यक्ति अपने संसद सदस्य से आग्रह करे कि वे खुल कर अन्ना का समर्थन करें तो निश्चित रूप से इस अपील से आंदोलन को बल मिलेगा और जन लोकपाल बिल जल्द ही पास होगा ऐसा हमारा विश्वास है।
तमाम नामी-गिरामी हस्तियों ने भविष्य में होने वाले चुनावों में अपनी सीट पक्की करने हेतु अन्ना अनशन में अपनी हाजिरी लगानी शुरू कर दी है परन्तु कोई भी खुलकर यह नहीं कह रहा कि अन्ना द्वारा प्रस्तुत इस मसौदे पर हम अन्ना के साथ हैं।
कल तक हम भी यही सोच रहे थे कि इस दायरे मे प्रधानमंत्री व न्यायाधीशों को रखने पर आपत्ति है क्या? किंतु आज हमे इसका भी उत्तर समझ आ रहा है। प्रधानमंत्री तो देश के रक्षक हैं और जब वो हमारे ही सर्व मान्य सांसद के बहुमत से चुने जाते हैं फिर उनकी प्रतिष्ठा पर सवाल उठाना क्या उचित होगा! दूसरी मुख्य बात फिर तो हर कोई जिसके भी मन की न हुई वो प्रधानमंत्री के खिलाफ एक शिकायत पत्र दे देगा और जो भी कार्य वो कर रहे होंगे न सिर्फ रोक दिया जायेगा बल्कि जब तक उस पर कार्यवाही नहीं हो जाती वो दूसरे किसी कार्य को पूरा नहीं कर सकेंगे इस तरह तो देश में
प्रधानमंत्री पद सदा खाली ही बना रहेगा क्योंकि विरोधी पार्टियां,विरोधी लोग एक के बाद एक शिकायत पत्र देते ही रहेंगे और ये देश की प्रगति,प्रधानमंत्री पद की गरिमा उनके कार्यों सभी को ठप कर देगा,पतन की ओर ही ले जायेगा क्योंकि बजाय देश उन्नति के कार्यों के वो इसी में उलझे रह जायेंगे इसी तरह न्यायमूर्ति न्यायाधीशों के फैसलों की भी रोज ही अवमानना होगी क्योंकि जिसके भी पक्ष में निर्णय नहीं हुआ वही खड़ा हो जायेगा कि न्यायाधीश ने पैसे मांगे थे इस के खिलाफ सुनवाई की जाये। देश के गरिमामयी पद और इनके संचालक अपने मूल भूत कर्तव्यों को छोड़ इन्ही में उलझ कर रह जायेंगे…
अतः जन लोकपाल बिल को एक संवैधानिक रूप से पास कराने की जरूरत है और साथ ही देश की गरिमा एवं प्रगति के लिये कुछ अनावश्यक मांगो पर भी विचार किया जाना चाहिए। अन्ना की उचित मांगों पर संवैधानिक रूप से हम अन्ना का समर्थन करते हैं। कुछ पंक्तियां याद आ रही हैं-

आग कोई फिर दहकने जा रही है
नौजवानी फिर बहकने जा रही है
हद हुई,दिल्ली!सुनो ललकार अन्ना की
नौजवानी फिर नये इतिहास रचने जा रही है।

अन्ना के लिये सोहन लाल द्विवेदी जी की दो पंक्तियां सादर-
“चल पड़े जिधर दो डग मग में
चल पड़े कोटि पग उसी ओर”

अगस्त 21, 2011

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