कविता लिखी नहीं जाती,स्वतः लिख जाती है…

Sunday 29 January, 2012

जीवन की घुटन

भरी है जीवन में इतनी घुटन
रहा रिश्तों में उलझा,सदा ही मन
तलाशता रहा प्यार का दामन
न वफ़ा ही मिली,न कोई हमदम।
सूनी रातों में फिर टूटा तारा कहीं
लगा यूं मिल जाएगा किनारा कहीं
चाहूं संग उसका, अब हर घड़ी
पर उलझनें हैं फिर भी साथ में खड़ी।
सब रिश्तों से मिलती,है क्यूं चुभन
कभी खुल के जीने को तरसे ये मन
क्यूं भरी है जीवन में इतनी घुटन…
नवम्बर 22, 2011

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