कलम दर कलम
शब्द बे शब्द
भाव ही भाव
चलते जाते हैं हम।
कभी कुछ हँसी
कभी गम से भरे
समंदर में कहीं
बहते जाते हैं हम।
जब जिस भाव ने
धार रूप धरा
पूरे आवेग ने वही
वेश भरा
बहाव इतना तेज़
साथ दूर कहीं
बहते जाते हैं हम।
ठहराव आया,जब
मन भी रुका
उस शांत से वन में
गहन चले जाते हैं हम।
कहना है क्या,कहते हैं कुछ
कभी-कभी खुद को ही
न समझ पाते हैं हम।
है अपनी तलाश,या कि
मिलना है किससे
जाने किस राह पे
चलते जाते हैं हम।
कलम दर कलम
शब्द बे शब्द
भाव ही भाव
चलते जाते हैं हम…
सितम्बर 22, 2011
शब्द बे शब्द
भाव ही भाव
चलते जाते हैं हम।
कभी कुछ हँसी
कभी गम से भरे
समंदर में कहीं
बहते जाते हैं हम।
जब जिस भाव ने
धार रूप धरा
पूरे आवेग ने वही
वेश भरा
बहाव इतना तेज़
साथ दूर कहीं
बहते जाते हैं हम।
ठहराव आया,जब
मन भी रुका
उस शांत से वन में
गहन चले जाते हैं हम।
कहना है क्या,कहते हैं कुछ
कभी-कभी खुद को ही
न समझ पाते हैं हम।
है अपनी तलाश,या कि
मिलना है किससे
जाने किस राह पे
चलते जाते हैं हम।
कलम दर कलम
शब्द बे शब्द
भाव ही भाव
चलते जाते हैं हम…
सितम्बर 22, 2011
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