कविता लिखी नहीं जाती,स्वतः लिख जाती है…

Sunday 29 January, 2012

कभी सोचा न था

जाना तु्म्हारा यूँ चुभेगा हमें
कभी सोचा न था
तुम यूँ चले जाओगे,न रोकेगा कोई
कभी सोचा न था
बरसों का प्यार भी था धोखा तुम्हे
इस सच से अंजान तुम?
कभी सोचा न था
सर्वस्व सौंपा था तुमने जिसे
वो सच में छीन लेगा
कभी सोचा न था
प्रेम की खातिर था जीवन तुम्हारा
वही छीन लेगा मधुबन भी तुम्हारा
कभी सोचा न था
हाँ टूटे हो तुम और टूटे हैं हम
बेबसी का ये नज़ारा
कभी सोचा न था
नई राह में इक नई चाह में
पड़ेगा जीना दुबारा
कभी सोचा न था
हों खुशियाँ ही खुशियाँ
जले दीपक की लौ
दुआ है अब,कभी फिर न हो
ऐसा कुछ
जो तुमने कभी सोचा न था…

अक्टूबर 14, 2011

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