कविता लिखी नहीं जाती,स्वतः लिख जाती है…

Sunday 29 January, 2012

तुलसी जयंती पर विशेष-21वीं शताब्दी और तुलसीदास का जीवन

वरेण्य वाणी पुत्र गोस्वामी तुलसी दास के साहित्य पर सर्वाधिक शोध कार्य हुए हैं,परंतु यह विडम्बना है कि इस महापुरुष का जीवन आज तक निर्विवाद नहीं है उनकी जन्म तिथि तथा पुण्य तिथि भी निर्विवाद नहीं है कुछ लोग उनका निधन श्रावण शुक्ल
सप्तमी को मानते हैं तो कुछ लोग उनका निधन-सावन कृष्णा तीज शनि को।
इसी प्रकार उनका जन्मस्थान भी निर्विवाद नहीं है। राजापुर(बाँदा चित्रकूट),राजापुर पसका(गोंडा)तथा सोरों(सूकर क्षेत्र जिला एटा)
नामक तीनों स्थान इस बात का सर्वाधिक दावा करते हैं कि तुलसी दास का जन्म उन्हीं के यहाँ हुआ था और सबके पास अपने-अपने अकाट्य तर्क और प्रमाण हैं।इन सभी स्थानों पर तुलसी दास द्वारा आरोपित तथा स्थापित बट वृक्ष तथा बजरंग बली की मूर्तियाँ हैं,सूकर क्षेत्र ,तुलसी की ससुराल या ननिहाल भी निकट है।मानस की हस्तलिखित प्रतियाँ है तथा उनके गुरु नरहरि दास का आश्रम या पाठशाला भी है।एटा,गोंडा तथा बाँदा के जिला गजेटियर में भी किसी न किसी प्रकार से तुलसी का उल्लेख मिलता है।सारांश यह है कि इन तीनो ही स्थानों के पक्ष में एक से एक धुरंधर विद्वान मिल जाते हैं।विडम्बना यह है कि हिंदी जगत आज तक निर्विवाद रूप से यह नहीं निश्चय कर सका है कि तुलसी दास का प्रमाणित और वास्तविक जन्म स्थान कौन सा है।उपरोक्त तीन स्थानों के अतिरिक्त हस्तिनापुर(निकटचित्रकूट),हाजीपुर,राजापुर(प्रयाग)राजापुर(साहाबाद)राजापुर(बैसवारा),बलिया,बरेली,रामपुर(सीतापुर),माना(बस्ती),अयोध्या तथा कुरुक्षेत्र(हरियाणा)जैसे स्थान भी अपने यहाँ तुलसी दास का जन्म होना मानते हैं और उनके तर्कों तथा तथ्यों की भी आसानी से उपेक्षा नहीं की जा सकती है।
गोस्वामी तुलसी दास ने अपने साहित्य में गुरु,देव तथा खल वंदना भी की है परंतु माता-पिता की कोई वंदना नहीं मिलती है।उनकी माता का तथाकथित नाम हुलसी संज्ञा है या विशेषण इसका भी निर्णय होना अभी बाकी है।
कहा जाता है कि वे दुबे ब्राम्हण थे परन्तु-दिये सुकुल जन्म शरीर सुंदर। के हिसाब से लोग उन्हें सुंदर कुल में जन्म पाने वाला शु्क्ल ब्राम्हण भी मानते हैं।
रत्नावली प्रसंग को लेकर तुलसी को बहुत बदनाम किया गया है कि अंधेरी रात में किसी शव पर बैठकर उन्होंने नदी पार की और छत से लटकते साँप को रस्सी समझ कर वे छत पर चढ़ गए और रत्नावली से मिले।तुलसी के इन विरोधियों को बुद्धि का अजीर्ण हो गया है।भला किसी शव पर बैठकर कहीं नदी पार की जा सकती है,बहते शव पर पक्षी तो बैठ लेते हैं परंतु कोई नौजवान भला उस पर कैसे बैठ सकता है।किसी नौका की तरह बरसाती नदी के प्रवाह में किसी शव को मनचाहे स्थान पर नाव की तरह खेकर किनारे नहीं लगाया जा सकता।इसी प्रकार छत से नीचे लटक रहा साँप यदि जीवित है तो वह मानव स्पर्श पाकर या तो काट लेगा या भाग जाएगा तथा यदि वो मरा हुआ साँप लटका है तो भी उसे रस्सी की तरह प्रयोग नहीं किया जा सकता।मानव शरीर का भार पड़ते ही वह नीचे जमीन पर आ जाएगा क्योंकि साँप का दूसरा सिरा मकान की छत पर किसी खूँटे से बँधा नहीं रहा होगा।
सारांश यह है कि तुलसी साहित्य में हम सभी की सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि गोस्वामी जी के जीवन को बदनाम करने वाले प्रचार का तथ्य तथा खंडन आज की नयी पीढ़ी के समक्ष रखें तथा उनका एक सर्वमान्य जीवन वृत्त प्रकाशित किया जाए।इस दिशा में यूरोप से काफी कुछ सीखा जा सकता है।

कितना सुंदर स्वाँग सजाया
सुंदर बंदनवार बनाया
मानस को पूजा,तुलसी को-
लेकिन एक न फूल चढ़ाया…

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