कविता लिखी नहीं जाती,स्वतः लिख जाती है…

Sunday 29 January, 2012

जो जितना व्यस्त उतना सफल

सुख-दुख,आना-जाना सब जीवन के पहलू हैं हर कोई ये जानता भी है और समझता भी।सच भी यही है कि जीवन के उतार-चढ़ाव के बीच तालमेल बनाए रखना चाहिए हर पल को आनंद से भर लेना चाहिए।कभी-कभी शायद सभी ने ऐसा महसूस किया ज़रूर होगा भले ही मात्र एक क्षण को जैसे खुशियाँ सारी पास हैं फिर भी कुछ तलाश है।कभी ऐसा भी लगता है कि आप चारों तरफ अपनों से उनके अपनत्व से घिरे हैं किंतु इतनी भीड़ के बावजूद भी कभी अकेलापन महसूस होता है।
जीवन में व्यस्तताएँ बहुत बढ़ गई हैं ऐसा लोग प्रायः कहते हैं किंतु क्या वास्तविकता यही है।थ्री-जी का जमाना है इधर सोचा उधर मिला,कार्य की तीव्रता इच्छाशक्ति समान हो गई है फिर व्यस्तता है कहाँ?परिवार के लिए समय नहीं,दोस्तों से भी संपर्क नहीं,ऑफिस के काम भी पैंडिग चल रहे है,फिर व्यस्त कहाँ हैं हम यही खबर नहीं।
शायद मन को व्यस्तता शब्द ने जकड़ लिया है बस।चारों तरफ एक भागमभाग मची हुई है कि कौन ज़्यादा व्यस्त है जितना ज़्यादा जिसने व्यस्त दिखा लिया स्वयं को उतना ही अधिक वो चर्चा में।जीवन में बड़ा कठिन
है बदलते समय से तालमेल बिठाना-बगैर किसी परेशानी के परेशान होने का ख़िताब पाना। जैसे पहले लोगों को उनकी योग्यतानुसार उपाधियों से नवाज़ा जाता था वैसे ही आज भी यह प्रथा जोर-शोर से फल-फूल रही है समय के साथ उपाधियों के नाम में परिवर्तन भर हो गया है मात्र, ये हमारी आज के युग की प्रसिद्ध उपाधियाँ हैं-बेचारा-बेचारी,हैरान-परेशान,व्यस्त,काम ही काम और न जाने क्या-क्या…
जीवन का आंनद लेना चाहिए शायद हमें यही सारे शब्द आनंदित कर देते हैं जब लोग कहते हैं हाँ-हाँ हम समझते हैं तुम्हें।चोट लगे बिना ही दवा-मरहम सब मिल रहा है,कितना आनंद आता है लोगों ने बेचारा कहा,परेशान कहा और व्यस्त भी कह दिया अब तो और भी बढ़िया-सोने पे सुहागा। कहावत भी कह डाली मन ही मन-हींग लगी न फिटकरी और रंग भी चोखा। दो पक्तिंया याद आ रही हैं बस-

हमेशा झूठ हम आपस में बोलते आए
न मेरे दिल में न तेरी जबाँ पे छाला है…

जुलाई 28, 2011

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