कविता लिखी नहीं जाती,स्वतः लिख जाती है…

Sunday 29 January, 2012

औरत का जीवन

औरत का जीवन भी
जीवन है क्या
हर दिन नया जन्म
नयी शुरुवात है
इक ही जीवन के हैं
कई-कई रूप
इन रूपों में डूबी
औरत है कहाँ?
कहते हैं लोग औरत को महान
क्या सच में कर पाते हैं,
उसका मान…
माँ,बहन,बेटी न जाने कितने नाम
इन सब के बीच में
औरत ही रही गुमनाम।
कोई एक रूप वो
चुने भला कैसे
सम्पूर्णता पे उसकी ये
प्रश्न चिन्ह कैसे!
हर रूप में जीकर ही
बनती वो महान
अपने मूल रूप की न
कोई पहचान ?
निर्बल भी वो है,सबल भी वो
ममता भरी है,मृदुल भी वो
फिर भी है अपने आप से अंजान
रिश्तों में ही समाई है उसकी जान
कहते हैं लोग,औरत है महान..
सितम्बर 27, 2011

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