कविता लिखी नहीं जाती,स्वतः लिख जाती है…

Sunday 29 January, 2012

कभी-कभी

कुछ अजीब सा खालीपन
लगता है कभी-कभी
न कोई है अपना कहीं
दर्द होता है कभी-कभी
रिश्तों से कभी भरता नहीं ये अधूरापन
इन सबके बीच महसूस होता है कभी-कभी
क्या सोचते हैं,और क्यूं हैं भला
जी बताना भी नहीं चाहता है कभी-कभी
खुश हैं हम सम्पन्न भी,फिर क्यूं
गहरे दर्द कहीं उठता है कभी-कभी
बंद आँखों के भीतर हैं सपने छुपे
उन सपनों की नमी मे,सीलता है मन कभी-कभी
क्या चाहत,क्या हसरत इन सबके बीच
कुछ अजीब सा खालीपन लगता है कभी-कभी…

सितम्बर 29, 2011 

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