जीते हैं लोग पर जीते नहीं
हाँ चलता है जिस्म और मन भी कभी
खा़मोश दिल,खा़मोश रहता नहीं।
दिखावा छलावा व्यापार है घना
हाड़ मांस का एक इंसान है बना
हैं जज़बात कितने,ये किसने सुना।
सही-गलत चर्चा ज़ोरों से रही
नज़रिया बदलना मुश्किल तो नहीं
पर ये चाह भी,सदा औरों से रही।
दुखा दिल कितना,न कोई ख़बर
नज़र का फेर है,या मन का वहम
सोच अपनी-अपनी,हैं अपने मरम।
उलझे हर पल,न सुकूं हैं कहीं
जीते हैं लोग पर जीते नहीं…
नवम्बर 6, 2011
हाँ चलता है जिस्म और मन भी कभी
खा़मोश दिल,खा़मोश रहता नहीं।
दिखावा छलावा व्यापार है घना
हाड़ मांस का एक इंसान है बना
हैं जज़बात कितने,ये किसने सुना।
सही-गलत चर्चा ज़ोरों से रही
नज़रिया बदलना मुश्किल तो नहीं
पर ये चाह भी,सदा औरों से रही।
दुखा दिल कितना,न कोई ख़बर
नज़र का फेर है,या मन का वहम
सोच अपनी-अपनी,हैं अपने मरम।
उलझे हर पल,न सुकूं हैं कहीं
जीते हैं लोग पर जीते नहीं…
नवम्बर 6, 2011
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