कविता लिखी नहीं जाती,स्वतः लिख जाती है…

Sunday 29 January, 2012

बाल-दिवस

सोंधी माटी की खुशबू सा
होता प्यारा बचपन
नई अदाएं नये तरीके
अनोखा होता हर दिन
फूलों की खुशबू मंद बयार
चिड़ियों की कलकल है अपार
मधु स्मृतियों के बीच पनपता
हर पल चलता बचपन
कभी शैतानी कभी शिकायत
कभी हंसी का मधुबन
मासूम अदाएँ हर पल करती
नव जीवन-नव दर्पण
लाख मुसीबत लाख हो उलझन
पल में यूँ है गायब होती
जब भी चाहे आजमा लो
बस पढ़ लो ये बाल मन
चाचा नेहरू ने भी पढ़ा था
है अद्भुत ये बचपन
बाल दिवस पर हम सब करते
हैं उनको श्रद्धेय नमन…
नवम्बर 13, 2011

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