कविता लिखी नहीं जाती,स्वतः लिख जाती है…

Sunday 29 January, 2012

तुम जब याद आए बहुत याद आए

हाँ मैं नाराज़ हूँ तुमसे
सदा के लिए
क्यूँ मानू भला मैं
और किसके लिए
इक पल न सोचा तुमने
कैसे जिएंगे हम
इठला के चले गए
न ज़मीं पै हैं कदम
तुम चले गए तो क्या,
जी रहे हैं हम।
हमें गम है क्या गर
इतना तुम समझते
गहरी सूनी आँखों में न
कभी आँसू भरते
क्यूँ हर दिन सताते हो हमें
मुस्कुराता सा चेहरा दिखाते हो हमें
क्यूँ गए तुम हमसे कहीं दूर
हम यहाँ बेबस जीने को मजबूर
हो कहाँ तुम इक बार ये
बता दो
टूटे हुए हैं हम,न इतनी सजा दो
नम पलकों पे आके
नींदें सजा दो
इक बार तो मुझे
फ़िर से बुला दो।
तुम आओगे वापस यकीं है हमें,
कब आओगे लेकिन
इतना तो बता दो…

जुलाई 21, 2011 

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