काँधे पे सर कुछ झुका सा रहा
साँसों का लम्हा रुका सा रहा।
साँसों का लम्हा रुका सा रहा।
बंद पलकें रूह में कुछ समा सा रहा
कपकपाते लबों का फ़साना रहा।
कपकपाते लबों का फ़साना रहा।
खुशबू-ए-जिस्म की मदहोशियत न पूछो
साँसों में तेरी साँसों का पहरा सा रहा।
साँसों में तेरी साँसों का पहरा सा रहा।
परछाइयां भी हसीन लगने लगीं
इश्क का कुछ ऐसा नशा सा रहा।
इश्क का कुछ ऐसा नशा सा रहा।
गहराइयाँ थीं इतनी-सागर भी कम
था लम्हा मगर,जीवन जिया सा रहा।
था लम्हा मगर,जीवन जिया सा रहा।