कविता लिखी नहीं जाती,स्वतः लिख जाती है…

Sunday 29 January, 2012

निरंजन

वो मिलना तुम्हारा है नदी का किनारा
साथ है हर पल फिर भी मिल नहीं सकते.
वो बातें तुम्हारी हैं लहरों की धारा
जिन्हें सुने बिन हम रह नहीं सकते.
हर पल घेर लेती हैं आँखें तुम्हारी
जिन्हें नज़र बन्द हम कर नहीं सकते.
तुम हो मेरे जीवन की ऐसी अलख
जो निरंजन के सिवा कुछ दे नहीं सकते…
अलख-जो न दिखे
निरंजन-जो सुख दे

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