कविता लिखी नहीं जाती,स्वतः लिख जाती है…

Sunday 29 January, 2012

जीवन के हैं खेल अजब

जीवन के हैं खेल अजब
न कोई समझ पाया
किसने कितना विष है पिया
ये नशा किसे क्यों आया
कोई तो सुख में भी
सुखी नहीं
निज ढूढ़े नए बहाने
वो हैं क्यों इतने खुश
बस यही जाल फैलाया
काश जानते कि ईश्वर ने क्यों
बगिया में फूल खिलाया
जीवन है बगिया फूलों की
न कोई समझ ये पाया
रंगों की इस विविधता को
जो भी समझ है पाया
सही मायने में उसने ही
जीवन को अपनाया
जीवन के हैं खेल अजब
न कोई समझ पाया…

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