कविता लिखी नहीं जाती,स्वतः लिख जाती है…

Monday 5 March, 2012

औरत की दुश्मन है औरत यहाँ

औरत की दुश्मन है औरत यहाँ
फिर भी औरत ही बेचारी यहाँ।
हर हादसे का मुजरिम
क्या आदमी ही है ?’हाँ’
इल्ज़ाम लगा औरत
बन गई बेगुनाह।
भ्रूण से जन्म तक वो चाहे यही
हो लड़का ही पैदा न लड़की कभी
लड़की जो जन्मी तो कर्ज से भरी
लड़का ले आएगा धन की पोटली
लड़की पराई न काम की किसी
लड़के से जीवन की नईया टिकी
ये सोच,सिर्फ आदमी की नहीं है यहाँ
औरत ही ज़्यादा है स्वार्थी यहाँ।
हैवानियत है मर्दों की चारों तरफ
क्या यही इक पहचान, उनके लिए
बेचारियत है औरतों की चारों तरफ
क्या यही सच्चाई है,उनके लिए ?
हैवानियत का ताज है आदमी के सर
इस पीड़ा को कैसे वो,पिये हर पल
अबला है औरत और मासूम भी
इस आड़ में ही औरत,बेफिक्र यहाँ
न खुद से है प्यार,न खुद की है चाह
है औरत ही दुश्मन,औरत की यहाँ।

2 comments:

  1. हैवानियत का ताज है आदमी के सर
    इस पीड़ा को कैसे वो,पिये हर पल
    :):):):):):)

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  2. मर्द ही औरत को पतित करते हैं.पत्नी ही पति को पतित होने से बचाती हैं. औरत न होती तो पुरुष कहाँ से आते , पुरुष न होते तो औरत का अहंकार कहाँ ख़तम होता. अतः दोनों एक दुसरे के पूरक हैं.

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