काँधे पे सर कुछ झुका सा रहा
साँसों का लम्हा रुका सा रहा।
साँसों का लम्हा रुका सा रहा।
बंद पलकें रूह में कुछ समा सा रहा
कपकपाते लबों का फ़साना रहा।
कपकपाते लबों का फ़साना रहा।
खुशबू-ए-जिस्म की मदहोशियत न पूछो
साँसों में तेरी साँसों का पहरा सा रहा।
साँसों में तेरी साँसों का पहरा सा रहा।
परछाइयां भी हसीन लगने लगीं
इश्क का कुछ ऐसा नशा सा रहा।
इश्क का कुछ ऐसा नशा सा रहा।
गहराइयाँ थीं इतनी-सागर भी कम
था लम्हा मगर,जीवन जिया सा रहा।
था लम्हा मगर,जीवन जिया सा रहा।
परछाइयां भी हसीन लगने लगीं
ReplyDeleteइश्क का कुछ ऐसा नशा सा रहा ..
बहुत खूब ... इश्क का नशा ही ऐसा होता है ... हर शै से प्यार हो जाता है ... लाजवाब शेर है इस गज़ल का ...
गहराइयाँ थीं इतनी-सागर भी कम
ReplyDeleteथा लम्हा मगर,जीवन जिया सा रहा।
....बहुत खूब ! बहुत सुन्दर गज़ल..
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल दाद तो कुबूल करनी ही होगी ...
ReplyDeleteHriday se likhi hriday anubhuti sachmuch hriday ko anubhuti karane me sampurn saxam .
ReplyDeletebadhaeiiiiiiiiiiiiiiiiiii
INDU JI YE GHAZAL BAHUT HI ACHHI AUR DIL-AZIZ HAI..
ReplyDeleteKUCHH SHER WAZAN ME HAIN LEKIN BEHAR(METER) ME NHI HAIN.
LEKIN KUCHH ASHAAR NE TO KAMAAL KAR DIYA JAISE-
खुशबू-ए-जिस्म की मदहोशियत न पूछो
साँसों में तेरी साँसों का पहरा सा रहा।
परछाइयां भी हसीन लगने लगीं
इश्क का कुछ ऐसा नशा सा रहा। BAHUT HI HASIN ASHAAR HAIN YE!!!!
Irshaad hai !!
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