कविता लिखी नहीं जाती,स्वतः लिख जाती है…

Tuesday, 14 February 2012

तीखा है प्यार

तीखा है प्यार,असर कितना मीठा
घुलती हुई गुड़ की ढली के जैसा
न सख़्त है बहुत न बेहद नरम
ज़रा सी ताप-पिघल जाता है प्यार।
जाने कहाँ से उपजता,अहसास है
बीज है न बेढ़,न कोई खाद है
फिर भी लहलहाती फसल है प्यार।
ग़म आँखें भी हैं,कभी खुशी नम
हर ज़ख़्म पे लगे चाहत का मरहम
तासीर वेदना की घटाता है प्यार।
तूफ़ाँ भी कम है,हलचल-ए-इश्क में
रूह से जिस्म तक बवंडर का रुख़
एक क्षण में बदल देता है प्यार।
तीखा है प्यार-असर कितना मीठा…

Sunday, 12 February 2012

तुम्हारे लिए

न लिख पायेंगे कुछ,तुम्हारे लिए
क्योंकि तुम-लिखने नहीं देते!!
यूँ हाँथ पकड़ मेरा जाने
कहाँ ले जाते हो
धीरे से हथेली,आँख पर सजाकर
किसी और ही दुनिया की सैर कराते हो।
कभी कोई नग़मा कभी कोई शेर,कभी
प्यार से रूह छू जाते हो।
पलकों पे सजा कोई ख़्वाब सा लगे
दरम्याँ न कोई तुम पास आ जाते हो।
चल रही हैं साँस,फिर भी तुम उसे
आलिंगन में अपने बाँध जाते हो।
महकता है मन और बहकते कदम,
हर जनम के लिए अपना बना जाते हो
न लिख पायेंगे कुछ,तुम्हारे लिए
संग अपने सदा हमें ले जाते हो।