कविता लिखी नहीं जाती,स्वतः लिख जाती है…

Tuesday, 7 February 2012

जब भी होते खुश बहुत तुम

जब भी होते खुश बहुत तुम
मिलता अजब सुकूं सा हमको
पर देख तुम्हें परेशाँ कभी
दिल का हर कोना दुखता है
बस एक यही तो  न चाहा था।
बरसों बीते ये साथ न छूटा
अरमा बिखरे विश्वास न टूटा
हाँ हिस्से के सुख तु्म्हे न मिले
जब भी सोचा ये न चाहा था।
है उलझा जीवन,हो उलझन में तुम
सिलवट सा जीवन सोचा न था
दर्द तुम्हारे,हैं छलनी करते
चुभ-चुभ कर सीने को सदा हमारे
दिल है रोता सोच-सोच कर
तुम नाखुश हो,चाहा न था।
इक मुस्कान तुम्हारी अपनी,
लगे नए जीवन की ओढ़नी
सिवाय तुम्हारी खुशियों के बस
और कभी कुछ चाहा न था
जब भी होते खुश,हो बहत तुम
मिलता एक सुकूं सा हमको
जीवन में बस,यही चाहा था।

4 comments:

  1. खूबसूरत जज़्बात.

    ReplyDelete
  2. बरसों बीते ये साथ न छूटा
    अरमा बिखरे विश्वास न टूटा
    बहुत सुंदर हवपूर्ण प्रस्तुति ...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है

    ReplyDelete
  3. jab apna astitva mitati he.
    nadi swayam sagar ban jati he.
    khushiyan sagar ki kaise jane,
    wah begane path se aati he.
    ----------------------------
    aapki kavta padhkar apni ek purani kavita ki
    panktiyan jahan me aa gain. shubhkamnaon ke sath prashit kar raha hun.

    ReplyDelete